लौट आये पिता
देखा एक अनोखा सपना
पाई वो सुखद छाया सी
घर आँगन के हर कोने में
अपनों के संग दिखलाये पिता
आभास था कितना सुखद वो
फिर से घर लौट आये पिता
पाया खुद को अब सुरक्षित सा
जब हाथ सिर पर उन्होंने रखा
होकर बेफिक्र सी मुस्कुराई
आसमां बनके छाए पिता
उत्सव का वातावरण ऐसा
कभी कहकहे हँसी ठहाके
कहीं नाराजी शब्द अनोखे
अम्मा की मुस्कान लाये पिता
थमी सी ज़िंदगी अचानक ही
चलती हुई आज दिखलाई
तनकर इक विशाल वृक्ष से
छाया देते दिखलाये पिता
लग गए ताले कुछ मुखों पे
रौब से बैठे दिखलाये पिता
आँख खुली तो भीगे थे नैना
सुना था अब घर वो सारा
ना कहीं फिर नज़र आये पिता।।
✍️”कविता चौहान”
स्वरचित एवं मौलिक