लौट आओ गोरैया ….! (कविता)
लौट आओ ना गौरैया ! तुम्हें देखने को
तरस गए हैं मेरे व्याकुल नयन ।
कानों ने भी तो बड़े दिनों से नहीं सूने ,
तुम्हारे मीठे -मीठे रसीले बैन ।
अब आ भी जाओ ना की तुम्हारे बिना,
सुनी -सुनी है कब से अटरिया मेरी ।
आंगन भी सूना है सुन चिड़िया !
सामने आये तो लूंगी बलैया तेरी ।
रूठ गयी है क्या ? या कहीं खो गयी ?
जो दिखती नहीं घर की छत व् मुंडेरों पर।
खिडकियों पर ,दरवाज़ों पर नहीं दिखती ,
ना ही दिखती है गलियारे व् चौबारों पर।
रोज़ ही दीवारों पर रखती हूँ दाना-पानी ,
तू देख तो सही आकर अब भी रखा है।
तेरे लिए तो आज मैने खीर -पूड़ी ,
और हलवा भी तेरे लिए रखा है।
अब आ भी जा न मेरी नन्ही सहेली !
मत कर आनाकानी ,और न ही सता।
आकर चुग ले अपना दाना-पानी ,
जो तेरे लिए बड़े प्यार से मैंने रखा।
तू तो मेरी अपनी सी थी , ओ चिडिया !,
ची ची करके हर सुभह मुझे जगाती थी।
दाना-पानी खत्म हो जाने पर तू ,
चोंच से खाली बर्तन को टक -टकाती थी ।
हाय ! बहुत याद आता है मुझे चहचहाना .
सारे घर -आँगन में यहाँ -वहां फुदकना।
दानों के ढेर से दाना चुगना ,और पानी पीना ,
तेरा सांवला -सलोना रूप लगता था लुभावना ।
कहाँ है तेरा घोंसला ,ओ नन्ही गोरैया !
और तेरे नन्हे -नन्हे बच्चे है कहाँ ?
बहुत वर्षों से नहीं देखा तेरा घर-संसार ,
बता तूने अपना बसेरा बसा लिया है कहाँ ?
तू क्या गयी ,के मेरे घर की रौनक चली गयी ,
यूं लगे अपने परिवार की प्यारी सदस्य।चली गयी।
अब आ भी जा मेरी प्रिय सहेली ,यूँ हठ मत कर अब बता भी दे ना ! क्यों तू रूठ के चली गयी
देख ! चाहे कुछ भी हो तू देर रूठी नहीं रह सकती ,
कभी तो तुझे लौट के जल्दी आना होगा ।
तेरी -मेरी गहरी दोस्ती को तुझे हर हाल में निभाना होगा।
लौट आओ गोरैया ! के तुम्हें आना होगा. ….