लौटा दो बच्चों का बचपन – 60+ को समर्पित
सुबह से दोपहर हो गई थी झुरियों से भरे चेहरे वाला मदारी डमरू बजाते हुए घूम रहा था पर उसको शहर में एक जगह भी बच्चों का हुजूम नहीं दिखा था जहाँ वह बन्दर बंदरिया का खेल दिखा कर , कुछ पैसे इकट्ठे कर सके । कई जगह तो शौर होने का वास्ता दे कर , उसे दुत्कार कर भगाया भी गया ।
वह खुद ही बडबडाते हुए आगे बढ़ गया :
” आजकल शहरों के बच्चे तो मोबाइल पर ही खेल देखते रहते है , घर से बाहर निकलते ही नहीं है । बचपन क्या होता है ? उन्हें मालूम ही नहीं है । खैर ”
अब वह झुग्गियो के पास आ गया । कई बच्चे उसके पीछे पीछे आ गये ।
एक जगह उसने खेल दिखाना शुरू किया , बच्चे ताली बजा बजा कर खुश होने लगे । वहाँ बंदर बंदरिया भी खूब मस्ती से एक के बाद एक खेल दिखा रहे थे । अब एक खेल में बंदरिया, बंदर से रूठ कर मायके आ गयी थी , बंदर लेने गया था , उसने बंदरिया को खूब मनाया लेकिन वह नहीं मान रही थी तब बंदर को गुस्सा आ गया और उसने मदारी के हाथ से डंडा छीन लिया और बंदरिया डर कर बंदर के साथ जाने के लिए तैयार हो गयी ।
इस खेल से रमिया को शर्म आ गयी , एक बार उसके साथ भी ऐसा ही हुआ था , बाकी औरतें भी कहीं न कहीं इन कहानियों से अपने को जोड़ रही थी ।
इस बीच घर की औरतें कोई रोटी सब्जी, कोई एक दो रूपये ले कर आ गयी ।
अब मदारी ने सब सामान बटौरा और घर चल दिया ।साथ ही उसने हाथ जोड़ कर आसमान की तरफ देखा और बोला :
” या खुदा बच्चों का बचपन लौटा दे” और बंदर बंदरिया ने भी आसमान की तरफ देख कर ” आमीन” कहा ।”
स्वलिखित
लेखक
संतोष श्रीवास्तव
भोपाल