लौटना मुश्किल होता है
बहुत मुश्किल होता है
निरन्तर बढ रहे उत्साही कदम
पीछे की ओर मोड़ना
जब ऑंखे देख पा रही हो
अपनी मंजिल को बहुत करीब से।
बस चन्द कदमों का ही तो
फासला रह गया था
नियति की दुस्तर धार ने
रास्ते को ही काट डाला।
अब एक गहरी खाई है
मेरे और मंजिल के बीच।
पथ का पाथेय भी तो
खत्म हो रहा समय के साथ
बिन पाथेय ये तन मन
कब तक रुक पाएगा
ऐसे में खुद को बचाने को
वापस लौटना ही होगा।
अगर मैं बचा पाई खुद को
तभी कल सब पाने की
सम्भावना बचा पाऊँगी।
किन्तु आज ये सब
थकी इच्छाएं, स्वप्नों का भार
मेरे पाँव जकड़ रहे हैं।
वापस लौटते मेरे एक-एक कदम
लहूलुहान है इस जकड़न से।
थक गया है मन भी इस सबसे
चाहता है अब एक गहरी नींद
जो एक अरसे से मिलने न आई ।
सच है विपत्ति में
कौन संग रुकता है ?