लो विदा अब
दीप की लौ थकी सी उनींदी हुई कूकती कोकिला मधु मिलन के लिये।
डूबते चाँद ने चाँदनी से कहा लो विदा अब प्रभा की किरन के लिये।।
पुष्प की पंखड़ी ओंठ मधु की डली।
मृग मयूरी छिपी नाभि में केसरी।
स्वर्ण सी कामिनी चाल गजगामिनी,
काम के देवता की बनी रागनी।
तन की पीड़ा कसक मन की मीरा बनी अब विरह वेदना नित नमन के लिये।
डूबते चाँद ने चाँदनी से कहा लो विदा अब प्रभा की किरन के लिये।।
पथ कटीला थका सा चला प्रार्थी
तन की थाली सजा प्रेम की आरती।
राम रसखान साधू बचा न कहीं
प्रीति की प्रेम पाती यों बाची नहीं।
बस यही सत इड़ा का मनु प्रेम का तम की चादर हटा दो अमन के लिये।
डूबते चाँद ने चाँदनी से कहा लो विदा अब प्रभा की किरन के लिये।।