लो लौट आया कोरोना !
बीत गया एक साल,
बजाते रहे गाल,
ताली बजाई,
थाली बजाई,
दीप जलाए,
मोमबत्तियां जलाई,
किसी किसी ने टार्च जलाई,
कुछ लोगों ने मोबाइल से रोशनी बनाई,
हर उपाय वह कर दिखाया,
जिससे कोरोना जा सके भगाया,
लेकिन ये मुआ कोरोना फिर लौट आया।
हम घर पर ही लौक हो गये,
एक बार नहीं, कई बार हो गये,
एक-दो दिन नहीं, महिनों में रह गये,
उनके एक आह्वाहन पर हम मौन हो गये,
लेकिन ये मुआ कोरोना गया नहीं कहीं,
आ गया लौट कर फिर यहीं
अब इसकी फितरत पर जोक हो रहे,
लो लौट आया कोरोना,हम फिर लौक हो रहे।
हम हैं मनमौजी,
हम ही मनोरोगी,
हम ही हैं योगी,
हम ही हैं वैध, डाक्टर भी,
हम ही हैं रोगी,
हम ही ढोंगी,
हम ही हैं भुक्तभोगी भी,
हम ही हैं उपदेशक,
हम ही हैं अनुयाई,
हम ही आज्ञा पालक,
हम में ही अराजकता ई,
हम ही हैं प्रेम पुजारी,
हर बात हमने अपनाई,
फिर क्या करता ये कोरोना,
इतनी विविधता जो इसने हम पे पाई,
जाते जाते इसको, हमारी याद आई,
लो लौट आया कोरोना, इसकी आहट दी सुनाई।
अब हम किस पे दोष मढ रहे हैं,
क्यों कुछ किसी को कह रहे हैं,
ये याद तुमको ना आई,
जान है तो जहान है,
ये बात गई थी बताई,
ये भी गया था बताया,
जान भी और जहान भी,
बस थोड़ी सी ढील क्या दिखाई,
तुमने तो कर दी लापरवाही,
कितनी बार कहा था,
जब तक नहीं दवाई,
तब तक नहीं ढिलाई,
अब दवाई क्या आई,
कर दी तुमने ढिलाई,
अब करनी पड़ रही है फिर से सख्ताई,
शेष बची रह गई है कोरोना से ये लड़ाई,
लो लौट आया है कोरोना, मचा रहा है तबाही।
कोरोना के इस काल में,
बीते एक साल में,
हमने क्या कुछ नहीं किया है,
गरीबों को अन्न देकर,
राहत है पहुंचाईं,
बंद हुए उद्योगों को,
ऋण की की गई बंटाई,
घाटे के बाद भी हमने,
बनाई है दवाई,
धीरे धीरे व्यवस्था पटरी पर लाई,
जहां तहां हमने चुनाव भी कराए,
पुरे मनोयोग से प्रचार कर आए,
बड़े बड़े हुजूम उमड़ कर आए,
कोरोना का डर हमने दिलो-दिमाग से हटाए,
लेकिन ये मुआ कोरोना फिर लौट कर आए,
लौट कर आए हमें शर्मशार किया जाए।
कह रहा है कोरोना,
ना बनाओ कोई बहाना,
ना अब कोई पछताना,
ना चलेगा अब कोई रोना धोना,
जिसने भी मेरी ताकत को है जाना,
उसने नतमस्तक हो कर, किया मुझे रवाना,
जिसने दिखाई हेकड़ी,वो अब आंशू ना बहाना।।