लो बीतने को है एक और कार्य काल
पुरा होता एक और कार्य-काल
आस्था और अविश्वास के साथ
बनता हुआ विश्वाश और टुटती आस
बीत गये हैं ये चार साल ।
एक सपना मत दाता का,
एक सपना जन और जनता का
एक सपना कार्य करता का
एक सपना अपनो का,
एक सपना गैरों का,
सबके सपने होते नहीं हैं पुरे
कुछ को मिल जाता है मुकाम,
कुछ हो जाते हैं नाकाम,
और गुजर जाता है वह काल
यानि की पुरे होते पांच साल।
कितने खलते है यह साल,
कितने हो जाते है माला-माल,
कितने रह जाते है लिए मलाल,
विफलता के साथ गुजरे वह साल दर साल,
लो,पुरा हो गया एक और कार्य काल।
क्या हुआ जो वह वादे,
रह गये अधुरे या आध्दे,
वह तो सब करते ही हैं,
और क्या अभी तक कभी पुरे हुए हैं,
तो यह सवाल अब ही क्यों,
तब क्यों नही,जब साल दर साल नही,
ब्लकि,कई-कई कार्य काल तुमने उनको परखा,
हमे तो अभी आये हुए ही कितना वक्त बिता है,
जो इतनी उम्मीद पाले हो,
देखेंगे,हमे अभी तो फिर आना हैे
तुम हमे अजमाते ,हो, हमें तुमको अजमाना है।
आओ,हम पर करो विश्वास,
मिल कर पायेंगे हम राज,
होगें,हम फिर कामयाब,
मन मे है यह विश्वास,
हम होगें कामयाब उस दिन,
जिस दिन तुम दोगे हमारा साथ।
या उस दिन जब ठान ले हम यह बात,
हम होगें कामयाब,जब स्वयम् पर करेंगे विश्वास।