” लो फिर आ पहुँचा नववर्ष”
लो फिर आ पहुँचा नववर्ष
होने लगी बीते साल के लेखे-जोखे की जाँच
प्राप्त-अप्राप्त पर विमर्ष
हर वर्ष की भाँति फिर होगा निर्धारण
लक्ष्यों का,संकल्पों का
फिर किए जाएँगे एक बार वादे
कुछ खुद से कुछ औरों से,
क्यों अप्राप्त ही अधिक बचता है हर वर्ष
और मनाते हैं हम अपनी ही असफलता का हर्ष
छूट जाते हैं ज्यादातर लक्ष्य
टूट जाते हैं अधिकांश संकल्प
भूल जाते हैं बहुतेरे वादे
और बीत जाता है नया साल भी
बिना कुछ विशेष दिए
फिर कैसी झूठी आशाएं
फिर ये कैसा झूठा हर्ष
लो फिर आ पहुँचा नववर्ष…….