लोरी
आ मेरी बिटिया
मैं लोरी सुनाऊँ
तेरी सुरतिया पै
बलि बलि जाऊँ
आ तेरे बालों को
सुंदर सँवारूं
अपनी निदिया
तुझ पर वारूँ
पलकों सजीले
सपने सजाऊँ
तेरी……….
रेशम की डोरी से
पलना बनाऊं
चंदन की खुशबू से
पटली बनाऊँ
रंगबिरंगी झालर
लगाऊँ।
तेरी……….
शोभा मेरे घर की,
ऑंगन की गुड़िया।
अपने बाबुल सोन चिरैया।
रूठी न रहना रे,
तुझको मनाऊँ।
तेरी………
मन में बसी रहती,
तेरी किलोलें।
खिल,खिल,करती,
खुशियाँ हलोरें।
सर पर आँचल का ,
अम्बर फैलाऊँ।
तेरी……
प्रवीणा त्रिवेदी “प्रज्ञा”
नई दिल्ली 74