लोरी नहीं, ललकार
तुम्हें तो ग़म
बस एक दिल का
हमें तो दुःख
सारे ज़माने का!
तुम्हें तो फिक्र
बस एक लफ्ज़ की
हमें तो ध्यान
पूरे फ़साने का!!
अवाम को
जगाने के लिए
उठाए हुए
हम यह क़लम!
लोरी नहीं,
ललकार होगा
एक उन्वान
हमारे तराने का!!
Shekhar Chandra Mitra
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