लोभी चाटे पापी के गाँ… कहावत / DR. MUSAFIR BAITHA
मेरे घर की तरफ एक भद्दी सी लोकल कहावत है मगर है यह जोरदार, कटु सच्चाई को व्यक्त करने वाली। कहावत है -‘लोभी चाटे पापी के गाँड़’!
बिहार के चंपारण क्षेत्र में हाल में यह कहावत सार्थक हुई है।
एक जिंदा लड़की का श्राद्ध उसके पिता ने कर दिया है। श्राद्ध करने वाला पिता और श्राद्ध कराता पंडित पापी की भूमिका करते पकड़े गए हैं।
मीडिया में आई घटना के अनुसार, एक हिन्दू वयस्क जोड़े ने (जो सम्भवतः सजातीय हैं) घरवालों की मर्ज़ी के विरुद्ध प्रेम विवाह रचाया है।
कानून के ख्याल से ऐसा विवाह वैध है मगर लड़की एवं लड़के, दोनों के घरवाले नाराज़ हैं। नाराजगी स्वाभाविक है। बिहारी समाज अभी तंग नजर है, ऐसे परिवारों को ताना देता है।
उधर पुलिस लड़के एवं लड़की के घरवालों को समझाने-बुझाने में लगी है कि इस कानूनन वैध विवाह एवं बच्चों के कदम को वे स्वीकारें। न मानेंगे तो पुलिस शायद, अभिभावकों को कानूनी डंडे से भी मनवाने का प्रयास करेगी ही!
लड़के के पिता पक्ष का क्रोद्ध ज्यादा स्वाभाविक है क्योंकि दान-दहेज़ का जो उसने मंसूबा संजो रखा होगा वह अचानक धराशायी हो गया है।
लड़की के घरवालों का दुखड़ा यह होगा कि जब घर में ऐसी ‘नालायकी’ होती है तो पड़ोसी, बिरादरी वाले एवं रिश्तेदार भड़कते हैं। शादी विवाह एवं रिश्ते निभाने में परेशानी आती है। इन अपनों से समर्थन सहयोग पाने में बाधा पड़ती है और कमोवेश समाज में ब्लैकलिस्टेड हो जाने की स्थिति बनती है। ख़ासकर तब जब आप आर्थिक रूप से एवं रसूख के हिसाब से कमजोर पड़ते हों।कई बार संतानों की ऐसी ‘गलतियों’ के लिए अभिभावकों से पंचायत लगाकर दंड की वसूली की जाती है।
सिस्टम के सहयोग के लिए बनी गांव गिराम की पंचायतें भी ऐसे मौकों पर जाति-पंचायतों के आगे फ़िजूल की साबित होती हैं।
प्रस्तुत मामले में रोचक यह हुआ है कि लड़की के पिता ने आवेश में आकर बेटी को मरा करार देकर श्राद्ध कर डाला है।
यह श्राद्ध का मामला मज़ेदार है। जिस ब्राह्मण/पंडित ने यह किया है उसे श्राद्ध के कर्मकांड को जानबूझकर दूषित करने, धार्मिक विधान का मखौल उड़ाने के लिए दंडित किया जाना चाहिए। स्थानीय ब्राह्मण बिरादरी को चाहिए कि श्राद्ध कराने वाले अपने इस लोभी साथी पंडित को कोई सख्त सज़ा दे। उसे कम से कम कुछ सालों के लिए पण्डितगिरी/पुरोहतगिरी करने से वंचित कर दे।