” लोग “
अपनों के ज़ुल्म आप ही, सहते रहे हैं लोग
सैलाब -ए- अश़्क में भी, बहते रहे हैं लोग
हालात -ए- ज़ख्म कैसे हैं,वो कह नहीं सकते
दर्द दिल में रखकर भी, सहते रहे हैं लोग
रिश्वत तले फर्जी मेडिकल रिपोर्ट बनाते रहे हैं जो
ख़ुदा -ए- दोयम उन्हें भी, कहते रहे हैं लोग
हिफाज़त -ए- ज़िम्मेदारियां कंधों पर जिनके थीं
वर्दी पहन कर , चोरियां करते रहे हैं लोग
ज़िम्मेदारियां इंसाफ़ दिलाने की जिन पर थी
मुवक्किल -ए- खून जोंक बन चूसते रहे हैं लोग
आरज़ू में अपनी बीवी के तलबगार जो रहे
दीदार -ए- ग़ैर हुस्न कर आहें भरते रहे हैं लोग
प्रशासन के ज्यादातियों से हुआ हूँ रूबरू
गिला इस बात का ऐसा भी करते रहे हैं लोग
कैदियों की मज़बूरियों की चर्चा मैं क्या करूँ”चुन्नू”
दुश्वारियाँ सहकर भी, हँसते रहे हैं लोग —–
•••• कलमकार ••••
चुन्नू लाल गुप्ता – मऊ (उ.प्र.)