“लोग क्या सोचेंगे?”
जीवन में कभी-कभी ऐसी घटनाएँ घट जाती हैं जो हमें दुविधा में डाल देती हैं और मन में कई प्रकार के प्रश्न उठने लगते हैं जैसे कि जो मैं कर रहा हूँ वह सही तो है ना? मैंने जो फील्ड पसंद किया है उसमे मैं सफल नहीं हुआ तो? मैं जो कर रहा हूँ वह मुझे दुनिया से अलग तो नहीं कर देगा? ऐसा बहुत कुछ मन में चलता रहता है, खास तौर पर आपके जैसी युवा अवस्था में जानते हो इन सभी सवालों का मूल कारण क्या है? नहीं ना? तो चलो, मैं आपको बताता हूँ। इन सभी का मूल कारण है, एक ही डर “लोग क्या कहेंगे?” .
लेकिन दोस्तो, सभी महान पुरुषों का जीवन चरित्र अगर पढ़ोगे ना तो लगभग सभी में एक खूबी तो एक समान ही मिलेगी और वह खूबी है अपना ध्येय सिद्ध करने के लिए दृढ़ निश्चय के साथ . पुरुषार्थ करना। यदि उन्होंने “लोग क्या कहेंगे?” को प्रधानता दी होती तो वे कभी भी अपने जीवन में सफल नहीं हो पाते।
खुशी के कॉलेज में आज से वेकेशन शुरू हो गए थे। मन में वेकेशन का प्लान बनाते बनाते वह कॉलेज से घर लौटी। बिल्डिंग में पहुंच कर उसने लिफ्ट का बटन दबाया, तभी पड़ोस में रहने वाली कीर्ति मौसी और उनकी बहू वहा आकर खड़े हो गए।
“वेकेशन का क्या प्लान है खुशी?” कीर्ति मौसी ने बड़ी सी स्माइल देते हुए पूछा।
“वही कीर्ति मौसी जो हर साल होता है! आज रात की ट्रेन से जा रही हूं।” खुशी ने जवाब तो शांति से दिया, लेकिन कीर्ति मौसी ओर कुछ पूछे उससे पहले ही उसने अपने कानों में इयरफोन लगा लिये और अपनी नजरें फोन में गड़ा दी।
कीर्ति मौसी की स्माइल फीकी पड़ गई। कुछ कहे बिना वह खुशी को टकटकी लगाए देखती रही और अपनी बहू के कान में कुछ फुसफुसाने लगी।
“कितनी हंसती-खेलती लड़की थी। कौन जाने किसकी नजर लग गई इसे? यह भी कोई उमर है।”
“मम्मी जी मुझे तो लगता है कुछ गड़बड़ है.. पता है ना, आजकल के यंगस्टर्स को तो..?”
“अरेरे बेचारी… यह उमर तो घूमना-फिरना, पार्टियां करना… जलसा करने की है और यह?”
दोनों को नहीं पता था कि खुशी ने उनकी सारी
बातें सुन ली है।
लिफ्ट का दरवाजा खुला। सब चुपचाप बाहर निकल गए। खुशी घर पहुंची तो दरवाजे पर ताला लगा था, उसके पास चाबी नहीं थी। मम्मी अभी आती ही होगी यह सोचकर वह सीढ़ियों पर बैठ गई और वॉट्सऐप खोला। फेन्ड्स का चैट ग्रुप देखा तो पाया
कि ढेर सारे मैसेजेस आए हुए थे।
“वेकेशन प्लान?” ….
“अरे, गोवा चले?”….
“नहीं, कैम्पिंग करते हैं।…
“आज शाम को डिनर पर मिलकर डिसाइड करें?
सब ने यस कहा। खुशी ने जवाब नहीं दिया, इसलिए किसी ने पूछा,
“खुशी? विल यू जॉइन अस?”
“कहाँ हो खुशी?”
“छोड़ो यार वो नहीं आएगी… आजकल उसके वैकेशन के अलग ही प्लान होते है। खुशी की बेस्ट फ्रेंड प्रिया ने एक सैड स्माइली भेजते हुए लिखा।
“सो कॉल्ड स्पिरिचुअल प्लान” दूसरी फ्रेंड का रिप्लाइ आया।
“एक तरफ मैडम डान्स कॉम्पटिशन में भाग लेती है और दूसरी तरफ खुद को स्पिरिचुअल कहलवाती हैं।”
यह सब खुशी ने एक साथ पढ़ा। उसे बहुत गुस्सा आया। उसने गुस्से में तुरंत ग्रुप लीव कर दिया।
दूसरे ही पल प्रिया का फोन आया।
“खुशी तुमने ग्रुप क्यों लीव किया?”
“मेरी मरजी। पर तुम मेरे बारे में ग्रुप में ऐसा वैसा क्यों बोलती हो?”
“मैं कहाँ बोलती हूँ… वह तो वे लोग…..
“लेकिन शुरुआत तो तुमने ही की ना? क्या जरूरत है मेरी लाइफ में दखल देने की? कहकर खुशी ने फोन काट दिया।
मम्मी सीढ़ी चढ़कर आई। उन्होंने खुशी का तना हुआ चेहरा देखकर पूछा, “क्या हुआ बेटा?” खुशी ने उस समय तो कुछ जवाब नहीं दिया।
दरवाज़ा खोलकर दोनों घर के अंदर आए। अंदर आते ही खुशी ने अपने मन का गुबार निकाला।
“मम्मी… वाट्स रोंग अगर मैं अपने वेकेशन सबसे अलग प्लान करूँ तो? आनंदनगर में मुझे शांति मिलती है, सेवा करने में मजा आता है, मुझे सत्संग भी अच्छा लगता है इनफेक्ट, मैं तो इंतज़ार करती हूँ कि कब वेकेशन हो और मैं आनंदनगर जाऊँ। मुझे स्पिरिचुअल लाइफ पसंद है तो इसका मतलब यह तो नहीं है कि मैं नॉर्मल व्यक्ति नहीं हूँ?”
“बिल्कुल नहीं। ऐसा किसने कहा?”
“सत्संग में जाने का हक सिर्फ ओल्ड एज वालों को ही होता है? सत्संग में जाने के लिए क्या उमर देखनी चाहिए?”
“बिल्कुल नहीं! बल्कि तुम तो लकी हो कि तुम्हें इस उमर में यह सब मिला।”
“तो लोग ये क्यों नहीं समझते है? क्यों मेरी पीठ पीछे ऐसी बातें करते हैं? वैकेशन वहाँ बिताने के बाद पूरा साल मुझे इन लोगों के साथ ही रहना होता है। इट्स टफ मम्मी। मैं उन्हें फेस नहीं कर पाती हूँ। कभी-कभी तो मुझे लगता है कि मैं उनके साथ ही वेकेशन प्लान कर लूं। ताकि यह सब सुनना तो नहीं पड़ेगा। वे लोग क्या कहेंगे इस डर में जीना नहीं पड़ेगा।”
“ओह डियर… इतने सारे सवाल? मैं तो इनका जवाब नहीं दे पाऊँगी लेकिन हाँ! चलो, मैं तुम्हें कुछ दिखाती हूँ जिसमें तुम्हारे सभी सवालों के जवाब मिल जाएंगे।” ऐसा कहकर खुशी की मम्मी ने टचपैड पर सत्संग का वीडियो प्ले किया।
((ज्ञानी की दृष्टि से))
प्रश्नकर्ता: जब कोई डिसिजन लेना हो या कोई भी काम करना हो, तो बहुत सोशल प्रेशर रहता है, कि समाज में अच्छा लगेगा या नहीं या हमारे आस-पास में जो भी है, सगे-संबंधी वगैरह, उन सब को अच्छा लगेगा कि नहीं।
नीरू माँ: यह हमारी ही एक बिलीफ है। यह भी एक प्रकार का इगो ही है कि समाज क्या कहेगा। बुरा लगने पर हमारा इगो हर्ट हो जाता है और अच्छा लगने पर हमारा इगो एलिवेट हो जाता है। यह एक प्रकार का इगो ही है।
समाज अर्थात् क्या? अपने ही द्वारा बनाया हुआ। कोई आपसे कुछ कहने नहीं आता फिर भी 99% आपको ऐसा ही लगता है कि ‘यह खराब लगेगा, कोई कुछ कहेगा, कोई ऐसा कहेगा, वैसा कहेगा।’ किसी के पास फुर्सत नहीं है कुछ कहने या देखने के लिए।
और अगर किसी परिस्थिति में कोई आपसे कहे कि ‘आप ऐसा क्यों करते हो? गलत करते हो।’ तब अपने आप से जस्टिफ़ॉइ करना चाहिए ‘इफ आई एम राइट?’ अगर आप किसी को हर्ट हो ऐसा नहीं कर रही तो फिर किसी से डरने की जरूरत ही क्या है? समाज को बोल्डली फेस नहीं करना चाहिए? वो भी तब जब सही रास्ते पर हो। यदि गलत रास्ते पर चल रहे हो तो बात अलग है। लेकिन इफ यू आर डुइंग गुड़, समथिंग आपकी आत्मा के लिए, आपके अपने सैटिस्फैक्शन के लिए। किसी को हर्ट ना हो, किसी को दुःख न हो, किसी का खराब या नुकसान न हो। ऐसा करते हो तो फिर डरने की क्या जरूरत है? वॉय?
हाँ, अपने आप से पूछना कि ‘रियली यू आर डुइंग समथिंग रोग?’ किसी गलत रास्ते पर चल रहे हो? कोई गलत काम कर रहे हो? किसी के अधिकार का ले लेते हो? पैसे छिन लेते हो? ऐसा कुछ करते हो?’
नहीं। ऐसा नहीं करते हो तो यू आर करेक्ट। गो अहेड! और हमें तो आत्म ज्ञान के मार्ग पर चलना है। फिर तो कोई बात ही नहीं रही। इस मार्ग पर चलने पर यदि समाज कुछ कहता हो तो लोग उनकी दृष्टि से कहते हैं कि ‘दिस यू आर नॉट हुईंग राइट’। लेकिन आपको इन्टर्नली लगता है— ‘आइ एम डुइंग करेक्ट। मैं अपनी ह्यूमन लाइफ का बेस्ट यूज कर रही हूँ’ तो फिर किसी के अबस्ट्रक्शन पर ध्यान देने की जरूरत नहीं है। डोन्ट बॉदर.. गो अहेड! आपके भीतर की आत्मा एक्सेप्ट करती हो तो नो प्रॉब्लम। अगर आप गलत होगे तो भीतर से कहेगा कि ‘यू आर हुइंग रोंग। यू शुड नॉट डू इट।’