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26 Dec 2016 · 1 min read

लोग कहते हैं वो शीशे में उतर जाते हैं

देखा करता हूँ उन्हें शामो सहर जाते हैं
पर न पूछूँगा के किस यार के घर जाते हैं

मैं हज़ारों में भी तन्हा जो रहा करता हूँ
वे ही बाइस हैं मगर वे ही मुकर जाते हैं

है हक़ीक़त के कभी वे तो मेरे हो न सके
चश्म गो मैं हूँ बिछाता वो जिधर जाते हैं

आईना साथ लिए रहता हूँ मैं इस बाइस
लोग कहते हैं वो शीशे में उतर जाते हैं

वैसे आता ही नहीं इश्क़ निभाना उनको
राहे उल्फ़त पे वो ग़ाफ़िल जी! मगर जाते हैं

-‘ग़ाफ़िल’

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