लोग और समाज
मेरी एक नज़्म की कुछ पंक्तियाँ
???
ज़िंदगी में उलझनें होती हैं
बहुत मुश्किलें होती हैं
सरकार बदल जाती है
हम वैसे ही रहते हैं
लोग मर-मर कर जीते हैं
हम इसको समाज कहते हैं
ये कैसी विडंबना है
यहाँ इनका जीना मना है
कहाँ जा रहे
बस लोगों को लुभा रहे
कब संभलना होगा
ऐसे कब तक चलना होगा??
#हनीफ़_शिकोहाबादी ✍️