लोक सेवक की भूमिका
आज सभी युवाओ के जुबान पर है एक ही बात है भाई करना है तो सिविल सेवा करना है । क्यो करना है ,कैसे करना ,कहाँ करना ,उद्देश्य क्या है , कितनी लंबी लड़ाई हैं ,नही पता बस करना है । लोकतंत्र में क्या भूमिका है क्या योगदान देना है क्या कर सकते हैं ,नही पता, बस करना हैं ।
बात उन दिनों की जब नेहरू प्रधानमंत्री थे । बगीचे में कुछ दोस्तों से बातों बातों में ही किसी ने पूछा ,अच्छा नेहरू ये बता तेरे शासन की असफलता क्या हैं । नेहरू ने कहा कि “लोक प्रशासक ” मेरी असफ़लता है ।
एक ने कहाँ क्यो ” तुम तो अब तक के बेहतर और अनुभवी प्रधानमंत्री हो ” , तभी नेहरू ने टपक से कहा कि “मैंने औपनिवेशिक लोक सेवाओ की स्थापना नही की , जो गरीबो की समस्या समझने में असमर्थ हो ” और मेरी असफलता थी ,मैं औऱ कुछ भी नही कर सका।
वर्तमान के प्रधानमंत्री मंत्री ने सेवको के कर्यो की सराहना करते हुए कहा कि ” सिविल सेवको को प्रशासक या नियंत्रक से आगे बढ़ते हुए अब प्रबंधकीय कौशल का विकास करना
जरूरी है” ,और साथ मे कहा कि ” हम क्यो चले थे , आगे कहाँ तक जाना है, क्या करना है और क्यो करना है इसका भी ज्ञान होना चाहिए । ”
खैर मन में कवायद धुँए के तरह उठती हैं कि ,लोक सेवा मतलब पैसा कमाना होता हैं , या अपनी धाक को जमाना , अपना बोल बाला स्थापित करे , या फिर देश की अखंडता और एकता जैसे मुद्दे में ईमानदारी और सत्यनिष्ठा ,विस्वाश के साथ कार्य कर लोकतंत्र की महत्व की ज्योति को प्रज्ज्वलित करे । वो तो बनने के बाद पता चल ही जायेगा ।
आज मैं मणिपुर के लोक सेवक ” आर्मस्ट्रॉन्ग पामे ” कार्यो को देख रहा था , जिसने सराहनीय व काबिले तारीफ कार्य किया है । स्वयं के संसाधनों के बल पर 100 किलोमीटर की लंबी सड़को का निर्माण किया । ऐसे पारदर्शिता भरे कार्यो के बहुत से उद्धाहरण मिलते हैं पर यह सराहनीय था ।
होगा भी क्यो नही , लोक सेवक और लोकतंत्र दोनों के मूल तत्व “जनता के सहयोग में ” ही सन्नहित हैं । वैसे भी किसी स्वस्थ लोकतांत्रिक शासन प्रणाली की जीवंतता तथा सार्थकता इस बात से तय होती है कि वह शासन प्रणाली समाजिक आर्थिक न्याय को अंतिम जन तक कितनी ईमानदारी और सक्रियता से पहुँचा पा रही है ।
स्वतंत्रता प्राप्ति के समय देश की समस्याओं में अशिक्षा , बेरोजगारी ,गरीबी, मूलभूत अवसंरचना की कमी, स्वास्थ्य मानकों का कमजोर होना जैसे तत्वों के समाधान हेतु सिविल सेवको की ओर ही देखा गया, किंतु ,जागरूकता के अभाव तथा तकनीक के बेहतर प्रणाली प्रयोग न होने के कारणों इसकी असफलता को व्यक्त की ।
परन्तु सर्वविदित है कि आज वैश्विकरण का दौर है । तकनीक , सरकारी सरकारी कार्यो का बेहतर कार्यवन्यन , प्रशासको की तकनीक के साथ बेहतर तालमेल आज के दौर का परिणाम है कि समस्या जल्द जल्द से समाधान हो रहा है ।
उद्धाहरण स्वरूप “वैश्विक कोरोना” ही लेले । 136 करोड़ की आबादी वाला देश भारत , और इस महामारी ने रोजगार , खाद्य सुरक्षा , आर्थिक विकास, सभी क्षेत्रों को प्रभावित किया ,खासकर प्रवासियों को , लेकिन इन सभी के मध्य सिविल सेवक स्तम्भ के रूप में काम कर रहे थे ।
जैसे लोगो को खाद्य सामग्री, बेहतर परिवहन , सैनिटाइजर, मास्क जैसे आवश्यक वस्तु के उपलब्धता में महत्वपूर्ण भूमिका को निभाया ।
खैर कभी कभी सिविल सेवको के लालफीताशाही और आदमखोरी के रूप भी देखा जाता हैं । और ऐसा क्यों होता है कभी सोचा नही ,ख़ैर उन्हें बेहतर कार्यो के लिए पुरस्कृत न करना , प्रोन्नति, स्थान्तरण का भय आदि सभी कारण हो ।
लेकिन एक शायर ने खूब कहा है
” मेरा कातिल ही मेरा मुंसिफ हैं ,
क्या मेरे हक में फैसला देगा ” ।