लोकतंत्र में तानाशाही
पहले लोकतंत्र की आवाज कुचलती तानाशाही
अब लोकतंत्र में तानाशाही घुस गई है।
पहले पद में रहती थी जो तानाशाही
अब तानाशाही पद धारक में घुस गई है।
पहले स्वतंत्रता से संचालन करती तानाशाही
अब लोकतंत्र में घुसकर संचालन करती है।
पहले लोक अधिकार का हनन करती तानाशाही
अब तानाशाही पद पीछे से वार करती है।
पहले लोग समूह की राजा थी जो तानाशाही
अब लोकतंत्र में शकुनी बन कर घुस गई है।
पहले लोग बगावत को कुचलती थी तानाशाही
अब लोकतंत्र में बगावत करने घुस गई है।
पहले जनता पर अधिकार जताती तानाशाही
अब जनता से ही लोकतंत्र में घुस गई।
-विष्णु प्रसाद ‘पाँचोटिया’