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21 Jan 2022 · 1 min read

लोकतंत्र का खेल

लोकतंत्र का खेला देखों
सत्ता ख़ातिर मेला देखों

बदल रहें हैं पाला कैसे ?
गुरुओं के सँग चेला देखों

बिना बात के झंझट झगड़े
बेमतलब का झमेला देखों

जगह नहीं हैं दरवाजे पर
अब नेताओं का रेला देखों

जनसेवा का नाटक कर
टिकट कटने पे बवेला देखों

बेटा, बेटी, बहुँ, माता सब
रिश्तों का ठेलमठेला देखों

गाजा,भांग, चिलमजीवि का
संतो सा रूप चमेला देखों

गुंडा, चोर, माफिया संरक्षक
बनते नेता का छेला देखों

कोई किसी का नहीं सत्ता में
छछूंदर, साँप, नवेला देखों ।।
©आत्मबोध

1 Like · 262 Views
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