लोकतंत्र और आम आदमी।
हमारी जनतांत्रिक संविधान में बहुत सी खामियां हैं पर इस पर चर्चा क्यों नहीं होती है।सारे राजनैतिक दल इस बात पर गौर करें।
कि हम स्वचछ प्रशासन जनता को कैसे दे सकते हैं।आज हर राजनेता यह साबित नही कर सकता है कि मैं इस देश का सच्चा सिपाही हूं। हमने जो एक विशाल पेड़ सारी जनता की खातिर लगाया था।कि एक दिन यह पेड़ हर व्यक्ति को छाया प्रदान करेगा।पर वह जल्दी ही धराशाई होते नजर आ रहा है।
पर इस पेड़ को सहारा देने की जरूरत है।आज हमारा लोकतंत्र भारतीय लोकतंत्र नही रहा है।वह ऐसा लगता है कि यह ब्रिटिश का लोकतंत्र थोपा गया है। आज भी बहुत सारी धाराये ब्रिटिश शासन की है। उन्हें खत्म करने की जरूरत है। दूसरे पश्चिम देशों में लोकतंत्र का वर्चस्व काफी अच्छा है।पर! भारत का लोकतंत्र केवल चंद लोगों के लिए है। तुम नही जागे तो हम नही जाग पायेंगे। क्योंकि तुम्हारे पास बुद्धि ज्ञान है। फिर भी तुम चुप हो।यह सब जानते हुए कि गलत हो रहा है। क्या वेवशी हो सकती है।जो देश का सीधा सच्चा व्यक्ति मजदूर बनकर भी अपना जीवन यापन नही कर सकता है।जब मैं किसी कवि को देखता हूं , मुझे याद आती है एक कविता कि मैं कितना भुलक्कड़ हूं।जो जिन्दगी के सारे उसूलों को भूलकर जीता हूं।जब मैं देखता हूं किसी गरीब को तो मेरी आंखों में आंसू , और मेरा जोश जग जाता है।लक्ष्मण जी की तरह! फिर क्रोध के समुद्र में जीता हूं।जब मैं देखता हूं उस असहाय मां को तो जाग जाती है करुणामयी दया और उसकी सहायता के लिए यह तन न्यौछावर कर देता हूं। क्योंकि मुझे किसी के पीछे पीछे चलना अच्छा नही लगता है।