लॉक डाउन पर
मरीचिका के पीछे बहुत भागे
अब थोड़ा आराम करते हैं ।
वक्त की भी नज़ाकत यही
वक्त के संग संग चलते हैं ।
चलो अब बस कुछ दिन
घर पर ही ठहरते है ।
समय ने चुराई थी जो खुशियां
आज वो सब तलाश करते हैं ।
व्यस्तता में जो दोस्त दूर हुए
फिर से जारी संवाद करते हैं।
कुटुम्बी जन सभी अब संग रहें
सभी सबका ख्याल रखते हैं ।
समय के बांध थे जो स्वप्नों पर
तोड़कर बांध स्वप्न गढते हैं।
एकल परिवार में पलते बच्चे
अपनों के संग को तरसते हैं।
दें उन्हें प्रेम की शीतल छाया
सर्व संस्कृति आचार गुनते हैं।
चलो अब बस कुछ दिन
घर पर ही ठहरते हैं।