लॉकडाउन में ट्रेन की पटरी
मैं तो हूं एक ट्रेन की पटरी
चार माह से तेरे राह में तरसी
तेरे बिन लगती एक सूखी लकड़ी
ये हम साथी तु कहां गया है
नजरें तेरी चाह में तरसी
आंसू नदी की धारा बरसी
आजा मेरे मीत तु आजा
आके तु एक झलक दिखाजा
तु जब मुझपे चलता था
आनंद मुझे बहुत आता था
जिधर से भी तु जाती थी
खटपट की आवाज सुनाती थी
जब तु स्टेशन को आती थी
लोग एलर्ट हो जाते थे
स्टेशन पर जब रुक जाती थी
लोग जोरों से तुझमें घुस जाते थे
जब समय हो जाता था
दो हॉर्न देके चली जाती थी
मैं तो हूं एक ट्रेन की पटरी
चार माह से तेरी राह में तरसी
संजय कुमार✍️✍️