*लॉकडाउन का फायदा( कहानी )*
लॉकडाउन का फायदा( कहानी )
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टेलीविजन पर समाचारों में लिखकर आ रहा था कि लॉकडाउन दो सप्ताह के लिए बढ़ा दिया गया है । मैंने पिताजी को भी समाचार पढ़ते हुए देखा । वह अविचलित और भावशून्य थे। यहाँ तक कि जब यह लिख कर आया कि मंदिर भी बंद रहेंगे , तब भी उनके चेहरे पर कोई उतार-चढ़ाव नहीं था । मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ । पिताजी की आयु साठ वर्ष से ज्यादा हो गई है और मैंने हमेशा से उन्हें रोजाना सुबह मंदिर जाकर पूजा करते हुए देखा है । पूजा के बाद मंदिर में भजन – कीर्तन आदि में उनका लगभग एक घंटा व्यतीत हो जाता है । शायद ही कोई ऐसा दिन बीता होगा, जब वह घर पर हों और मंदिर में पूजा करने के लिए न जाएँ। यह उनका नियम था । कहते थे “भगवान के दर्शन किए बगैर मुझे कुछ अधूरापन महसूस होता है ।”
इधर जब से आकर लॉकडाउन शुरू हुआ , मंदिर बंद हो गए । घर से बाहर निकलने पर पाबंदी लग गई और पूजा भजन कीर्तन का क्रम टूट गया । लेकिन अगले ही दिन से मैंने एक विशेष परिवर्तन पिताजी की दिनचर्या में महसूस किया । जिस समय वह मंदिर जाते थे , अब उसी समय पर घर के एक कमरे में जो तख्त पड़ा हुआ था , उस पर पालथी मारकर बैठ जाते थे और लगभग बंद नेत्रों से बीस-पच्चीस मिनट ऐसे ही बैठे रहते थे। कभी-कभी बीच में कुछ हिलडुल भी लेते थे । फिर उसके बाद आँखें खोलते थे और उनके चेहरे पर पहले के मुकाबले में ज्यादा चमक महसूस होती थी ।
अब जब दो सप्ताह का लॉकडाउन का समय और बढ़ गया , मैंने पिता जी से पूछा ” क्या आपको असुविधा महसूस नहीं होती कि आपका मंदिर जाने का क्रम टूटा हुआ है और आप भगवान के दर्शन नहीं कर पा रहे हैं ? ”
सुनकर पिताजी मुस्कुरा उठे । बोले “तुम तो देखते ही हो । अब मैंने भगवान के दर्शन करने की एक नई विधि खोज ली है । इसमें घर से बाहर कहीं जाना नहीं पड़ता और अकेले ही यह कार्य किया जा सकता है। मैं रोजाना शांत और मौन रहकर भगवान से मुलाकात करने लगा हूँ।”
मैंने कहा “हाँ ! वह तो मैं भी देख रहा हूँ। पिछले करीब 40 दिन से आप रोजाना ध्यान लगाते हैं और इधर आकर आपने यह नई पद्धति खोज ली है ।”
पिताजी कहने लगे “शुरू में तो बेचैनी हुई और मैं असमंजस में पड़ गया कि बिना मंदिर जाए और बिना भगवान के दर्शन किए अब दिनचर्या कैसे चलेगी ? लेकिन फिर मैंने परिस्थितियों को स्वीकार किया और घर पर ही भगवान के दर्शन की व्यवस्था कर ली। हमारे पूर्वज हजारों साल से ध्यान लगाते चले आ रहे हैं । मैंने भी उसी तरफ प्रयत्न शुरू कर दिया और अब देखो , आँखें मूँदता हूँ और भगवान को अपने भीतर उपस्थित महसूस करने लगता हूँ। सच पूछो तो लॉकडाउन मेरे लिए वरदान सिद्ध हुआ है। न यह आता , न मैं घर पर कैद होता और न अपने भीतर छिपे भगवान को ढूंँढ पाता। ”
“तो फिर क्या आप अब कभी मंदिर नहीं जाएंगे ? भजन कीर्तन नहीं करेंगे? पूजा में भाग नहीं लेंगे ?”
पिताजी बोले “क्यों नहीं करेंगे ? सब कुछ करेंगे । लेकिन अब अनिवार्यता नहीं रही , क्योंकि भगवान मुझे अपने भीतर ही मिल गए हैं।”
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लेखक : रवि प्रकाश , बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 999 7 615 451