ले ले परंपराएं अपने साथ __ कविता
“आधुनिकता” के मेले में नशा ये सब को कैसा चढ़ा।
छोड़ के सारी “परंपराएं” बिन सोचे ही आगे बढ़ा।
छूट गए और टूट गए वे “संस्कार” जो बड़े प्यारे थे,
बात बात में अब तो तू हर किसी से जब चाहे लड़ा।।
नहीं नहीं यह अच्छी बात,ले ले परंपराएं अपने साथ
माना नया जमाना है यह क्यों न तू जाना है।
” प्रेम” ही अनमोल खजाना, छोङके धन तो जाना है।।
आजा आजा मन को समझा मन मानी नहीं करना है।
भटकाए जो समाज को अपने ऐसे कर्मों से डरना है।।
निभा ले तू तो सबका साथ हो न जाए जीवन की रात।
**यही यही है अच्छी बात ले ले परंपराएं अपने साथ**
राजेश व्यास अनुनय