लेख
सारा माथा पच्ची छोड़ कर, साहेब से कोई पूछे
युवा देश के युवाओं को पढ़ना चाहिए या
दलाली, भड़वागिरी ही करना चाहिए ?
अगर यही करना है फिर तो ठीक ही है, पैसा खुद ही रख लें ।
अगर नहीं, तो भले आदमी के जैसे शिक्षा पर उचित खर्चा करें और पिछला बकाया राशि जो खर्च ही नहीं हुआ वो भी दे दें । कौन सा देश का युवा उनसे उनका पैतृक सम्पत्ति मांग रहा है ? अपना ही पैसा तो अपने भविष्य को सुधारने के लिए मांग रहा है ।
हम लोग कितना लोगों को कोसते हैं कि फ्लाला डॉ ,फ्लाना इंजीनियर तो फलाना कर्मचारी घुस खोर है ।पैसे के उपर कुछ देखता ही नहीं ।
भला देखे भी बेचारा कैसे ? सारा मानवीय संवेदना तो कर्ज के नीचे दवा होता है ।
जिसे पढ़ाई के नाम पर लिया जाता है। या बाप का जीवन भर का कमा कर बचाया हुआ पैसा उस डिग्री को पाने में पानी जैसे बह जाता है।
फिर वो ईमानदार कब तक रह पाएगा अपने काम के प्रति।
उसे तो जल्दी से जल्दी अपना पैसा निकालना होता है। और जब तक पैसा निकलता है तब तक वो आदि हो जाता है उसी जीवन का जिसमे संवेदना के अलावा सब कुछ होता है।
तो अगर उन्हें ईमानदार बनाना है तो उन्हें मुफ्त शिक्षा देनी ही होगी। वर्ना तो राम ही राखे… जय हो
~ सिद्धार्थ