लेखनी
25. लेखनी
मुझे नहीं मालूम लेखनी लिखती है ,
पावक है या धूम लेखनी लिखती है ।
जीवन का अवसाद लेखनी लिखती है ,
मॉ का आशीर्वाद लेखनी लिखती है ।।
दुर्दिन में समाज की पीड़ा दिखती है ,
रक्त मसी में घोल लेखनी लिखती है ।
बड़े-बड़े इतिहास समय ने लिख डाले ,
गद्दारों को फॉस लेखनी लिखती है ।।
साँसों के संवेग लेखनी लिखती है ,
आँधी के आवेग लेखनी लिखती है ।
मरुधर की रेती में मीठे झरने सा ,
जीवन का संगीत लेखनी लिखती है ।।
पायल की छुन छुन से कविता बनती है ,
गोरी हो गुमसुम तो कविता बनती है ।
कोयल गाती गीत लेखनी लिखती है ,
गीत बिना संगीत लेखनी लिखती है ।।
कीचड़ में भी ब्रह्मकमल का खिल जाना ,
सूनी घाटी में भँवरे का मिल जाना ।
नदियों की धारा में कविता दिखती है ,
कवि नहीं ये स्वयं लेखनी लिखती है ।।
वेश्यालय में एक अकेली औरत पर ,
पूरी आदम जात सदा ही बिकती है ।
कडुवा है पर सत्य लेखनी लिखती है ,
कहता है ये कौन लेखनी बिकती है ।।
विधवा का वनवास तुम्ही को रास आये,
पतिव्रता के पाप लेखनी लिखती है ।
राजनीति के महासमर की मत पूछो ,
गधा बना है बाप लेखनी लिखती है ।।
झूठों की बकवास सभी को दिखती है ,
सच को कारावास लेखनी लिखती है ।
मगरमच्छ के ऑसू बात पुरानी है ,
ऑसू की बरसात लेखनी लिखती है ।।
*******
प्रकाश चंद्र , लखनऊ
IRPS (Retd)