लेखनी किसने थमाया है।
कैसे कहूँ बिपदा अपनी, मुझे किसने ये रोग लगाया है,
सैनिक के हाथों खड्ग छुड़ा, लेखनी किसने थमाया है।
कभी जिसके दहाड़ों से थर-थर, पर्वत के पसीने छूटते थे,
कभी जिसके मुख झर-झर-झर, गोलियों के झरने फूटते थे।
आज उसी जिह्वा पर देखो, किसने सरस्वती बिठाया है,
सैनिक के हाथों खड्ग छुड़ा, लेखनी किसने थमाया है।
कुछ अच्छा था, कुछ करुण कथा, कुछ पत्थरबाज़ों की करनी,
कुछ हाँथ बॉधने वाले सियासत, कुछ खुद की आफ़त की धरनी।
जो कर न सका हथियारों से, लिखने को कलम उठाया है,
सैनिक के हाथों खड्ग छुड़ा, लेखनी किसने थमाया है।
कोई मान दिया सम्मान किया, कोई इज़्ज़त भी सरेआम किया,
कोई चीरहरण किया द्रोपदी सा, इस वर्दी को नीलाम किया।
तोड़ सभी बाधाओं को वो, अब देने जबाब खुद आया है,
सैनिक के हाथों खड्ग छुड़ा, लेखनी किसने थमाया है।
जो कर न सके तलवार काम, वो कलम बखूबी करता है,
बिन काटें छाँटे, बिन रक्त पात के, सत्य में ताकत भरता है।
करने चिकित्सा इसी के बूते, ये साहित्य क्षेत्र में आया है,
सैनिक के हाथों खड्ग छुड़ा, लेखनी किसने थमाया है।
वो ब्यभचारी खुद जो इनको, बलात्कारी का सा नाम दिया,
करनी न देखी खुद की कभी, इन पर तोहमत इल्ज़ाम दिया।
उनकी गाथा रचने को बन कवि, वीर सिपाही आया है,
सैनिक के हाथों खड्ग छुड़ा, लेखनी किसने थमाया है।
रुख बदलेंगी हवाएँ भी, अब मौसम संज्ञान ये लाएगा,
रणक्षेत्र में चन्दबरदाई सुन, फिर चौहान तूणीर उठाएगा।
उमड़ेगा अन्धड़ जम के, चक्रवात वो “चिद्रूप” ले आया है,
सैनिक के हाथों खड्ग छुड़ा, लेखनी किसने थमाया है।
©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित १३/११/२०१८ )