लेकर तिरंगा चल पड़ा
गणतंत्र के आलोक में
प्रतिदीप्त है हिमगिरि शिखर
सुन्दर सुशोभित राष्ट्रध्वज
लहरा रहा हर गाँव घर
पंक्षियों ने तान छेड़ी
भ्रमर राग सुनाए गुनगुन
निःशब्द सावधान प्रकृति
कल-कल में गूँजी राष्ट्रधुन
विश्व दुर्लभ तंत्र में
नवरंग है परिवेश का
राजे रजवाड़े खड़े
तज भाव शेष-विशेष का
आशाओं का सूरज उतर
पावन धरा पर आ गया
नयनों में सुन्दर कल की कुछ
नवरश्मियां बिखरा गया
हों सुरक्षित बेटियाँ और
वृद्धजन का मान हो
हर हाथ को मिले काम
अपने देश का गुणगान हो
सुन्दर सड़क हो स्वच्छ जल
खुशियों से हो परिपूर्ण पल
झोपड़ियों में हो रोशनी
जन मन में हो गणतंत्र बल
इस आस में विश्वास में
हर भूखा नंगा चल पड़ा
सत्य करने स्वप्न को
लेकर तिरंगा चल पड़ा