लेंगड़ू कै व्याह (अवधी दोहे)
( 1)
लेंगड़ू जी दुलहा बने, लइकै गयें बरात।
पानी पियत मा एक ठू, गड़बड़ होय गै बात।।
(2)
होय रकौंधी एक तौ, अउर अँधेरी रात।
शौच करै खेतेम गयें, गदहा मारिस लात।।
(3)
लात मुहप कसिकै परा, मुँह भर माटी खाँय।
दुलहा वाला शान था, कस कै वैं चिल्लायँ।।
(4)
हालत काँपत आय कै, खटियप बैठें आय।
गोड़ मुहँ सब सूज कै, यहुँ भाथर होय जाय।।
द्वारेक चार
(5)
फ़ूफक काँधेप बैठ गें, उतरैक नाव न लेंय।
कोई उतरैक जौ कहै, लाखन गारी देंय।।
(6)
लपकावर लै सरहज चली, जनवासेम पहुँचीं आय।।
भूख लाग लेंगडुक रहा, सगरिव गें गुटकाय।।
(7)
जस तस द्वारेक चार भा, भाँवर कै भा टेम।
तब तक साली आय के, पूँछै लागीं क्षेम।।
(8)
दुल्हक भाँवर घूमना, घर कै नाही रीत।
पंडित बांचै मंत्र औ, गाव बियाहू गीत।
(9)
बियाह निपट गा ठीक से, चलौ करौ जेवनार।
लेंगड़ू के साथे तभी, लागी खाय बिलार।।
(10)
छप छप्प परसै दहिव, समझिन बिल्ली आय।
धीरे से पीढ़ा लिहिन, सासुक दिहन जमाय।।
(11)
बात असलियत जान गा, हुँवा के पूरा गाँव।
तब से दुलहा भाइ कै, परा लेंगडुवा नाव।।
प्रीतम श्रावस्तवी