लुटती जाए द्रौपदी
(1)
नहीं सुरक्षित बेटियां, होती रोज शिकार!
घर-गलियां बाज़ार हो, या संसद का द्वार !!
(2)
सजा कड़ी यूं दीजिये, काँप उठे शैतान !
न्याय पीड़िता को मिले, ऐसे रचो विधान !!
(3)
लुटती जाए द्रौपदी, बैठे हैं सब मौन !
चीर बचाने हर जगह, सौरभ आये कौन !!
✍ सत्यवान सौरभ