लिबास
शीर्षक-लिबास
लिबास की सफ़ेदी पर कौन रीझता है।
साफ तो इंसान का किरदार होना चाहिए।
कब तलक जन्नत को ख़यालों में ही देखेंगे
कभी तो उस स्वर्ग का दीदार होना चाहिए।
बिना सात फेरों के भी निभा रहे अहद-ए-वफ़ा
रूह से रूह का इक़रार होना चाहिए।
मज़हब के नाम पर क्यों बाँटते आवाम को
आदमी का आदमी से प्यार होना चाहिए।
वहम की आँधियों से ढहने न पाए मन-किला
सनम पर आँख बंद कर एतबार होना चाहिए।
लफ़्ज़ों के बिना भी बयाँ हो जाती हैं चाहतें
दिली फ़िक्र से इश्क़ का इज़हार होना चाहिए।
प्यार करना आसाँ है निभाना मुश्किल
हर ग़म से झूझने को मन तैयार होना चाहिए।
लिबाज़ की तरह क्यों बदलते हो हमसफ़र
मीत एक ही हो वफ़ादार होना चाहिए।
जैसे प्रीति का रंग चढ़ा मीरा राधा पर,
यूँ प्रेम में ये जिस्म सरोबार होना चाहिए।
शराफ़त इंसान की आँखों से हो जाहिर,
चेहरा पाकीज़गी का इश्तिहार होना चाहिए।
बदन के तलबगारों की कतार है लंबी,
कोई शख्स तो रूह का तलबगार होना चाहिए।
जिन्होंने दिया मुसीबत में साथ तेरा प्रीति
उन सभी का दिल से कर्जदार होना चाहिए।
प्रीति चौधरी”मनोरमा”
जनपद बुलंदशहर
उत्तरप्रदेश
मौलिक एवं अप्रकाशित।