लिख सकता हूँ ।।
दिन को दिन लिख सकता हूँ,
रात को रात लिख सकता हूँ,
डरता नहीं मैं किसी से क्युंकि
मैं युग की बात लिख सकता हूँ ।।
सच की स्याही कागज पे उतार सकता हूँ,
जिससे जैसी मुलाकात हो लिख सकता हूँ,
गम, पीड़ा और आँसू को भी लिख सकता हूँ
दिल में दर्द हो तो भी, आँसू रोक सकता हूँ ।।
सोचा नहीं था मैंने कि –
मेरे लिखने से ये भी हो सकता हैं,
गलत साबित करने में मुझको,
सारा जमाना शामिल हो सकता है,
किसी के कुछ कहने से
मेरा हौसला भी तबाह हो सकता है,
मेरे प्यार भरे कुछ व्यंगात्मक शब्दों से
समाज में बवाल भी हो सकता है।।
©अभिषेक पाण्डेय अभि
०३/०१/२०२३