** लिख रहे हो कथा **
** गीतिका **
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क्यों जुदाई भरी लिख रहे हो कथा।
बढ़ चलो राह में भूल कर हर व्यथा।
पा सका है वही नींद सुख चैन की।
नित्य जिसने यहां जिन्दगी को मथा।
झूठ के पांव होते नहीं जान लो।
सत्य निष्फल कभी भी नहीं सर्वथा।
न्याय संगत करें शिष्ट व्यवहार हम।
व्यर्थ क्यों हो क्षमा तोड़ दें यह प्रथा।
बिन वजह रोक देना नहीं तुम कदम।
फिर न कहना कभी लक्ष्य तो पास था।
आ सके काम जो व्यक्त आभार है।
देखते जो रहे लें नहीं अन्यथा।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, २१/१०/२०२३