लिख रहा हूं इक ग़ज़ल ले वज़्न तेरे प्यार का ।
ग़ज़ल।लिख रहा हूं इक ग़ज़ल
दर्द से बोझिल मिला है दिल मिरे अशरार का ।
लिख रहा हूँ इक ग़ज़ल ले वज़्न तेरे प्यार का ।।
तन्हा तन्हा हो गया अब बेसुरा मिसरा उला ।
और सानी है तिरा दिल शान ऐ संसार का ।।
क़ाफ़िया चेहरे का लेता या तिरी मुस्कान से ।
पर रदीफ़ें कर रही मुझसे ज़िरह बेकार का ।।
लाख़ कोशिश मै करूँ अल्फ़ाज़ सारे हो तिरे ।
हूबहू मिलता मज़ा न पर तिरे किरदार का ।।
लफ़्ज सारे है सिसकते आलमे तनहाइयों मे ।
रफ़्ता रफ़्ता हो रहा है अब असर इनकार का ।।
शायरी करता रहा मैं देखकर चेहरा तिरा ।
मै अदा कैसे करूँ अब क़र्ज़ ऐ दीदार का ।।
सींचता हूं नाम रकमिश लिख दु मक्ते मे तिरा ।
बेवज़ह फ़ीका पड़ेगा दम मिरे फ़नकार का ।।
रकमिश – @राम केश मिश्र
सुल्तानपुर