लिख रहा हूँ मैं
इस दौर का दीवान लिख रहा हूँ मैं
हक़ीक़त-ए-जहान लिख रहा हूँ मैं।
हुस्नोईश्क़ पर लिखनेवाले हैं बहुत
बेबसों की दास्तान लिख रहा हूँ मैं।
गुजर जाऊँ गुमनाम कोई गम नहीं
डाल खतरे में जान लिख रहा हूँ मैं।
खुदा की खुदगर्ज़ी खलेगी ज़रूर
हो कर जो परेशान लिख रहा हूँ मैं।
मंदिरों से मुझको अब भेजेंगे लानत
आदमी को भगवान लिख रहा हूँ मैं ।
आनेवाली पीढ़ीयाँ पढ़ेंगी मुझको भी
नये दौर का संविधान लिख रहा हूँ मैं ।
लग न जाए बुरी नज़र अजय कहीं
है मेरा भारत महान लिख रहा हूँ मैं
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