लिखो तो कोई बात लिखो
लिखों तो कोई बात लिखों
अपने दिल की बात लिखों
ओ बिते कैसे रात था
ओ हसी कैसी शाम था
जब उसके हाथों में तुम्हारा हाथ था
प्रकृति ने उस समय कैसा छेड़ा राग था
जब होंठों पे तुम्हारे उसका ही बस नाम था
लिखों तो कोई बात लिखों
अपने दिल की सार लिखों
मिलें थे किस राह पर
कौन मोड़ चला साथ था
ओ कितने तुम्हारे पास
जिसकी आज भी तुम्हें एहसास हैं
जिसे मिल कर दिल हुआ बाग-बाग था
लिखों तो कोई अच्छा बात लिखों
अपने दिल को हाल लिखों
कौन था ओ प्रदेशी ,जिसकी आने का आज आस है
क्यों झूका-झूका आकाश हैं
आखिर तेरे दिल का क्या राज है
कौन तेरा सर ताज है
जिसकी चाहत में तुम्हें कुछ ना याद है
लिखों तो कोई बात लिखों
अपने दिल की एहसास लिखों
नीतू साह(हुसेना बंगरा)सिवान-बिहार