लिखू या गुनगुनाऊं
हे भवसागर के प्रेम पुजारी
तुझको मै एक बात बताऊ
खुला आस्मां धरा हरी है
इसमें बैठ तेरे साथ गुनगुनाऊं
पल दो पल की यह ख़ुशी है
चल उसको हस खेल बिताऊं
हे भवसागर के प्रेम पुजारी
तुझको मै एक बात बताऊ………..
बहती नवनिर्मळ सरिता को देख
प्रेम रश के अर्पण मे खो जाऊ
कल कल करती इस जलधारा मे
प्रेम कि एक डुबकी चल तेरे साथ लगाउ
हे भवसागर जे प्रेम पुजारी
तुझको मै एक बात बताऊ….
सागर किनारे बैठ कर
तेरी यादो मे खो जाऊ
उन लहरों की मधुर संगीत मे
तेरा मुस्कराता चेहरा ज़ब पाउँ
हे भवसागर के प्रेम पुजारी
तुझको मै एक बात बताऊ……
आंगन मे ज़ब बैठ तू कुछ सोचे
तेरी उस सोच मे मै दिख जाऊ
मिले ज़ब साथ हम दोनों
एक नए गीत का अर्पण कर जाऊ
हे भवसागर के प्रेम पुजारी
तुझको मै एक बात बताऊ
तुझको मै एक बात बताऊ………