लिखूँ
ओमिक्रान के भय से मुरझाए चेहरे लिखूँ
फुटपाथों पर सिसकती हुई जिन्दगी लिखूँ
सत्ता के गलियारों की चहल पहल को लिखूँ
किसानों की गुमशुम गुमनाम बेबसी को लिखूँ
क्या लिखूँ
डर है रोजगार फिर से लोगों के न छीन जाए
कोई भी अपनों से बिछड़ दूर न चला जाए
मजदूर दो जून की रोटी के लिए न तरस जाए
माँ कोई बीच राह शिशु को दे न जन्म जाए
डर है
बंटाधार हो गयी है युवाओं की आज यह पढ़ाई
पढ़ाई की आढ़ में हो रही है यू ट्यूब की दिखाई
देश के भविष्य के साथ कैसी यह है ढिटाई
क्या है यह परिस्थितियाँ , बस मन की समझाई
क्या करूँ