लिखने लग जाती मैं कविता
– लिखने लग जाती मैं कविता
उमड़ घुमड़ विचारों को
देकर काव्य रुप फिर
लिखने लग जाती मैं कविता।
अपने खाली पन
रंग बिरंगे शब्दों से रंगी
लिखने लग जाती मैं कविता।
बीते गुज़रे अच्छे-बुरे पल
याद में लिखने लग जाती मैं कविता।
अपने यूं ही खालीपन को
अक्षरों से भर लिखने लग जाती मैं कविता ।
मौज-मस्ती की बातों की स्मृति में
पन्ने में लिखने लग जाती मैं कविता।
प्रेम रस में भर भीगी
इश्क बहा लिखने लग जाती में कविता।
फाल्गुनी आई होली रंगों से सजाने
लिखने लग जाती मैं कविता।
त्योहार दिवाली दीयों की कतार सी
प्रज्ज्वलित कर लिखने लग जाती मैं कविता ।
मानव जीवन है अनोखा
पीर खुशी का है यहां मेला
उसी पर लिखने लग जाती मैं कविता।
मन के आंगन में भावों के प्रसून अनेक
उन्हीं पुष्प को चुन लिखने लग जाती मैं कविता।
-सीमा गुप्ता,अलवर राजस्थान