” लिखने की कला “
डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
==================
आज हम क्षितिज के जाँबाज परिंदे बन गए हैं ! ….दसों दिशाओं में हमारी तूती बोलने लगी है ! …..हमें गर्व है कि आधुनिक यंत्रों की सौगात हमें मिल गयी है ! पलक झपकते विश्व के कोने -कोने तक पहुँच सकते हैं ! ….अनगिनत मित्रों से जुड़ जाते हैं ! ……विभिन्य सगठनों से हमारा सानिध्य होने लगता है !…. उनके विचारों को पढ़ते हैं …देश -विदेश की संस्कृति ,….सभ्यता ….और ….राजनीति उथल -पुथल को जान पाते हैं !….. मनोरंजन के विभिन्य विधाओं का आनंद उठाने में कोई कसार नहीं छोड़ते हैं ! ….कभी व्हात्सप …कभी मेसेज ….वीडियो कालिंग …और ना जाने सहस्त्रों विधाओं का हम बेधड़ले से उपयोग करते हैं ! /////प्रायः-प्रायः इन प्रक्रियाओं के अभ्यस्त होते हुए ,हम मूलभूत दिशाओं से द्रिग्भ्रमित होने लगते हैं ! ……पहले हम अपने गुरुओं को ढूंढते थे और उनके दिशा निर्देशों पर भविष्य का निर्माण करते थे ! ….और यह प्रक्रिया धूमिल हो गयी …कहना यथोचित नहीं होगा ! …..गूगल हरेक शंका समाधान का एक अचूक वरदान भले सिध्य हुआ हो ..पर ….. शालीनता ..शिष्टाचार ..मृदुलता …..और …….लिखने की भाव भंगिमा हमें अपने गुरु ,….माता -पिता …समाज …साथी -संगी ,,,और …परिवेश की छत्रछाया में सीखने को मिलती है ! …आभार ..अभिनन्दन ..श्रीमान ..महोदय . आदरणीय …आदरणीया…स्नेह ..सस्नेह …सिरोधार्य …प्रणाम ..आशीष इत्यादि का प्रयोग हमें हमारे सुन्दर संस्कारों से ही मिल पाते हैं ! …….दरअसल हमारी लिखने की शैली से हमें लोग पहचान जाते हैं ! ……मनोवैज्ञानिक तो निपुण होते ही हैं और तो और साधारण व्यक्ति भी हमारे विचारों को क्षण में मनोवैज्ञानिक विश्लेषण कर बैठते हैं ! …..आज फेसबुक के रंगमंच से जुड़ गए ..और हमारी भाषा शैली को पढ़ते आपकी धारणा ही बदल गयी ..! और फिर पाश्च्याताप होने लगता है कि हमने यथायोग्य मित्रों का चयन क्यों नहीं किया ?
हमें पढ़ना है …हमें सीखना है …और लिखने की कला अपने ह्रदय में वसा के ,,खूब लिखना है !
===============================
डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
एस ० पी ० कॉलेज रोड
दुमका
झारखंड
भारत