लिखना पसंद है
लिखना पसंद है, इसलिये लिखता हूँ
अपनी समझ, अपने एहसास को
लफ़्ज़ों में ढालने की कोशिश करता हूँ
अंदर का दर्द, कुछ अनकही बाते,
काग़ज़ पर सजा लेता हूँ
अपनी कविताओं में अक्सर
मै ख़ुद को ढूंढता रहता हूँ |
तुम कहती हो, पढ़कर सुनाओ
मै ढंग से पढ़ नही पाता हूँ
कभी तेज़, कभी बुदबुदाता हूँ
काग़ज़ पर लिखी अपनी कविता,
पढ़ते, गुनगुनाते हिचकिचाता हूँ
अल्फ़ाज़ मेरे जो काग़ज़ पर तो इतराते है
उन्हे कहते, सुनाते कतराता हूँ |
दुनियादारी अगर मै भी सीख लेता,
बस यूँ ही हाँ में हाँ मिला लेता,
कभी बात डटकर बोल देता,
कभी हंस कर बात टाल देता,
बातों-बातों में दिल लुभा लेता,
गर महफ़िलें मै भी सजा लेता,
तो शायद….
मै लिख नही पाता!