लिखना चाहता हूं…
जो बस ठहर सी गई हो चेहरे पर
और रह गई हो आवाज से तन्हा
उन ऑखों में पढ़ी जा सकती हो
जहां पर छिपा हो एक संदेश नन्हा
मैं वो खामोशियां लिखना चाहता हूं…
जो सर्द दर्द को गर्म नर्म बना पाए
बदल के रख दें बर्फ सीधे भाप में
और पत्थर क्या पहाड़ मोम बना दे
फिर भी रखे फूलों सा दिल ताप में
मैं वो गर्मजोशियां लिखना चाहता हूं…
छूट गई जो हजारों-हजार नजरों से
लिखी ना कलमकारों की कलमों से
जो बनी थी कभी दुर्गम सरहदों पे
निशानियां वीर जवानों के कदमों से
मैं वो निशानियां लिखना चाहता हूं…
जो कर दी थी कभी बिना मांगे ही
मिलती गई थी छोटा-सा फर्ज निभाने
जो मेहरबान हुई थी हर नई सांस में
और मिली थी मिट्टी का कर्ज चुकाने
मैं वो मेहरबानियां लिखना चाहता हूं…
वो कोड़े-कालापानी वो काल-कोठरियां
फांसी के फंदों को चूमने की दिलेरियां
वो जजिया वो निरंकुशों की मनमर्जिया
वो दमन-उत्पीड़न वो गुलामी की घड़ियां
मैं वो परेशानियां लिखना चाहता हूं…
जो कभी मिटी थी मिट्टी की आन में
झूल गई थी फंदों पे देश की शान में
जो खेल गई थी भरी जवानी बीच में
सेहरा सजने का सर कटे बलिदान में
मैं वो जवानियां लिखना चाहता हूं…
खा चुके थे कसमें वो दे चुके थे जुबान
बिना नाम-निशान हो गए थे बलिदान
रह गए थें जमाने में हर जगह गुमनाम
जो कर गए थे अपना सब कुछ कुर्बान
मैं वो कुर्बानियां लिखना चाहता हूं…
जो नियति से बने थे अंधे गूंगे-बहरों की
जो नियत से बने थे अंधे गूंगे-बहरों की
उनके पल-पल पोषण शोषण संघर्षों की
बीती दुख-दर्द की दुश्वारियां सारे वर्षों की
मैं वो दुश्वारियां लिखना चाहता हूं…
ये हर पल में गरजती बरसती गोलियां
ये दुनिया से ही मिटा देंगे वाली बोलियां
न लिखूं बम-बारुद गोलों की गूंज कही
जहां ये सिसकते बच्चे भी महफूज नही
मैं वो सिसकियां लिखना चाहता हूं…
जो गवाह बनी हो तमाम विरही रातों की
गठरी बनी हो वो तमाम मीठी बातों की
वो अकेलापन वो दूरियां रिश्तों नातों की
जो पेशगी हो उन नासमझी जज्बातों की
मैं वो तन्हाइयां लिखना चाहता हूं…
जो कर दी गई थी कभी अनजाने में
समझ न आई दुनिया के समझाने में
भावनाओं के भाटा जोश के ज्वार में
कर दी थी गुस्ताखियां जो जमाने में
मैं वो नादानियां लिखना चाहता हूं…
जो कभी भी कही न गई हो जमाने में
ना ही हसरत रखती हो कुछ छिपाने में
जो बन पड़े हो किस्से जाने-अनजाने में
गढ़ती चली हो जिंदगियों के अफसाने में
मैं वो कहानियां लिखना चाहता हूं…
~०~
अक्टूबर २०२४, ©जीवनसवारो