*लिखते खुद हरगिज नहीं, देते अपना नाम (हास्य कुंडलिया)*
लिखते खुद हरगिज नहीं, देते अपना नाम (हास्य कुंडलिया)
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लिखते खुद हरगिज नहीं , देते अपना नाम
चोरी का श्रम सर्वदा , गुण यह धन्य प्रणाम
गुण यह धन्य प्रणाम , नाम से अपना गाते
अपना कहकर काव्य , पत्रिका में छपवाते
कहते रवि कविराय ,वाह ! क्या शातिर दिखते
पाँच मिनट में माल , चुराकर अपना लिखते
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
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शातिर = मक्कार ,चालबाज ,परम धूर्त