लिखता हूँ
टूटे – टूटे खाट का छप्पर
लिखता हूँ।
घुरहू का मैं फटा मुकद्दर
लिखता हूँ I
जिसका है रसराज सुशोभित
फटी बिवाई।
भरती मिट्टी की परतें हैै
दुःखी लुगाई।
उस फेकनी का रंग कबूतर
लिखता हूँ. I
चालीस का चेहरा लिखता हूँ
उसका साठा I
निकला यौवन का मक्खन
अब बचा है माठा I
बुझते चूल्हे पर
कनस्तर लिखता हूँ .।
मिले मजूरी लगे उसे
दिल्ली की सत्ता ।
खेले कर्ज गरीबी से
वह मन में पत्ता ।
सदा हारता काला अक्षर
लिखता हूँ..