लाश आशिक़ की उठाई जा रही हैं
पालकी दुल्हन कि लाई जा रही हैं
लाश आशिक़ की उठाई जा रही हैं
हुस्न की महफ़िल सजाई जा रही हैं
आज फिर क़ीमत लगाई जा रही हैं
फेंक पांसा क्या तमाशा कर रहे वो
वोट की क़ीमत लगाई जा रही हैं
सत्य को दुनिया की नजरों से छुपाकर
बात झूठी क्यो बताई जा रही हैं
भूख से बेहाल है जो लोग उनको
दूर से रोटी दिखाई जा रही हैं
आशिकी का दंभ भरते तो सभी है
पर किसी से क्या निभाई जा रही हैं
याद उनकी ही सताती है कँवल क्यों
जिसके दिल से तू भुलाई जा रही हैं