लावनी छंद आधारित गीत (रौद्र रस)
#विधा ?गीत (लावनी छंद आधारित)
#रचना ?
—————————————————–
#मुखड़ा
अग्रज दो आशीष मुझे मैं, वाण करूँ संधान अभी।
कुलघाती आया है लड़ने, ले लूँ उसकी जान अभी।।
#अंतरा
वन वन भटक रहे हम भैया, पर उसको संतोष नहीं।
दारुण दुख सहकर भी कहते, इसमें उसका दोष नहीं।
राम दलन को आया सोचे, चूर करूँ अभिमान अभी।
कुलघाती आया है लड़ने,ले लूँ उसकी जान अभी।।१।।
लेकर सेना अवधपुरी की, कैकेयी नंदन आया है।
अपने सँग वो हाथी घोड़े, अस्त्र शस्त्र भी लाया है।
निरख उसे मैनें कर ली है,बाणों का संधान अभी।
कुलघाती आया है लड़ने, ले लूँ उसकी जान अभी।२।।
आया है अपने पैरो पर, किन्तु नहीं जा पायेगा)
कसम तुम्हारी मैं खाता हूँ, सठ यह मुँहकी खायेगा।
भरत संग ब्रह्मांड खड़ा हो, फिर भी हरुं गुमान अभी।
कुलघाती आया है लड़ने, ले लूँ उसकी जान अभी।।३।।
पूर्णतः स्वरचित व स्वप्रमाणित
रचनाकार का नाम : पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’
शहर का नाम : मुसहरवा (मंशानगर) पश्चिमी चम्पारण
बिहार