लावणी छंद
छंद शास्त्र मे यद्यपि लावणी के चरणांत को गुरु वर्ण संख्या से मुक्त रखा गया है। चरणांत मे एक या अधिक गुरु हो सकते है।
लेकिन साथ ही चरणांत दो गुरु होने पर कुकुभ और तीन गुरु होने पर ताटंक भी कहा गया।
इसका मतलब यह हुआ कि लावणी एक ऐसा छंद है जिसके ताटंक और कुकुभ दो अलग रूप भी है। अब केवल चरणान्त एक गुरु या तीन से ज्यादा गुरु बचते है जिनको ताटंक या कुकुभ नहीं कहा जा सकता ।
अतः एक गुरु चरणांत होने पर शुद्ध लावणी का रूप बचता है।
बीच मे किसी चरण मे एक से अधिक गुरु आना स्वीकार हो सकता है।
अतः चरणात एक गुरु को ही लावणी माना जा सकता है।
लावणी छंद
नभ से नव -पल्लव पर गिर कर
सजें खजल मुतियन-लड़ियाँ।
महक रहा मन, चंदन -वन सा,
अधर कुमुदिनी पंखुड़ियाँ।।
रूप -सलौना देख रूपसी,
चंद्र लजाये छिप घन में!।
दिव्य -रूप वृषभानु दुलारी!
वृन्दावन के निधिवन में।।
मन, मनमोहन, मोहे सबका,
श्यामल सूरत प्रेम- भरी।
आज हुआ सखि!,उर आनंदित
देखूँअपलक, सुध- बिसरी!।।
कलरव सी ध्वनि गूँज रही है,
सरयू पर बाजी मुरली।
अति सुंदर नटवर नागरिया, ‘नीलम’ छवि अँखियन भर ली।।
नीलम शर्मा ✍️