लावणी छंद- “आधुनिक शिक्षा”
शिक्षित- शिक्षित करते रहते, ज्ञान विहीन समाज रहा,
अशिष्टता पाँव पसारे जग, संस्कृति विलुप्त आज रहा!
विदेशी सभ्यता को अपना, नव पीढ़ी बर्बाद हुयी,
है लोकलाज सब बिसर चुकी, मधुशाला आबाद हुयी!!
अब शिक्षा जगत के क्षेत्र में, शिक्षा का व्यापार हुआ,
पाठशाला मंदिर बैंठकर, भविष्य से खिलवाड़ हुआ!
अपशब्दों की कटुशैली से, घृणित कुंठित समाज हुआ,
खण्ड खण्ड आधारशिला से, शिक्षा का आगाज हुआ!!
धर्म-अधर्म,नीति-अनीति से, बढ़ता अत्याचार रहा,
अपराधों के बोध तले अब, जीना भी दुश्वार रहा!
भ्रष्टाचार की नीतियों को, जन-जन खड़ा निहार रहा,
संस्कार सभ्यता खो करकें, शिक्षित भी गंवार रहा!!
नारी का सम्मान न हिय में, रिश्तों से अनजान रहा,
छलकपट अरु द्वेष में उलझे, मन अन्तस अभिमान रहा!
हीरे मोती बंग्ला गाड़ी, पर बुर्जुग फुटपाथ रहा,
ऐसी उच्च कोटि शिक्षा को, साष्टांग पाणिपात रहा!!
-अर्चना शुक्ला”अभिधा”