लालच
पनप रहा है हर तरफ, नफरत का बाजार।
मानव लालच में पड़ा, करता हद को पार।। १
स्वर्ण हिरण होता नहीं, जान रहे थे राम।
फसना लालच में नहीं,देना था पैगाम।। २
-लक्ष्मी सिंह
पनप रहा है हर तरफ, नफरत का बाजार।
मानव लालच में पड़ा, करता हद को पार।। १
स्वर्ण हिरण होता नहीं, जान रहे थे राम।
फसना लालच में नहीं,देना था पैगाम।। २
-लक्ष्मी सिंह