लार्जर देन लाइफ होने लगे हैं हिंदी फिल्मों के खलनायक -आलेख
लार्जर देन लाइफ़ होने लगे हैं हिंदी फिल्मों के खलनायक ”
बॉलीवुड सिनेमा में सफलता की ग्यारंटी अच्छी पटकथा के साथ साथ स्थापित कलाकारों की मौजूदगी भी है ऐसा इसलिए भी कह सकते हैं कि महज कुछ फ़िल्में सुपरस्टार्स की वजह से दर्शकों के आकर्षण का केंद्र रहीं। दिलीप कुमार, देव आनंद , राजेश खन्ना , अमिताभ बच्चन , विनोद खन्ना, सलमान खान , आमिर खान , अक्षय कुमार जैसे दिग्गजों की भी कुछ फ़िल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर हलचल तो पैदा की लेकिन अच्छे कंटेंट के अभाव मे फ्लॉप साबित हुई। जिस तरह फिल्मों मे दमदार नायक की प्रधानता होती थी तो अस्सी के दशक से सिनेमा में नायक के विरोधी के रूप में शक्तिशाली खलनायक की कमी भी खलने लगी । जितना बड़ा नायक, उतना ही मज़बूत किरदार खलनायक का भी । बॉलीवुड मे
प्राण साहब, के एन सिंह , अमजद खान, शक्ति कपूर जैसे खलनायकों ने सिनेमा के पर्दे पर अपनी खलनायकी से न केवल अपना दबदबा क़ायम किया बल्कि लोगों की नफरतों का सामना इस हद तक करा कि कोई माँ अपने बेटे का नाम प्राण, शक्ति या अमजद नहीं रखना चाहती थी। रमेश सिप्पी की ब्लॉकबस्टर मूवी शोले में गब्बर सिंह डाकू के किरदार को अमजद खान साहब ने अमर कर दिया। उसके बाद हिंदी सिनेमा में खलनायकी की परिभाषा बदली और अब खलनायक का किरदार पहले से ज़्यादा खूंखार , क्रूर और दहशत पैदा करने वाला पेश किया गया, जिसने खलनायक को लार्जर देन लाइफ करैक्टर मे ढाला और वो खलनायक पात्र आज भी फ़िल्म के नायक नायिका से अधिक पसंद किये जाते है, और खलनायक के किरदार का महिमामंडन किया शोमैन सुभाष घई साहब ने। सुभाष घई ने कर्मा में अनुपम ख़ैर साहब को देशद्रोही डॉ डेंग, क़र्ज़ मे प्रेम नाथ साहब को
सर जूडा, कालीचरण मे अजीत साहब को लायन, सौदागर मे अमरीश पुरी जी को चुनिया मामा, राम लखन मे गुलशन ग्रोवर को केसरिया विलायती, रज़ा मुराद को सर जॉन और अमरीश पुरी को बिशम्भर तथा त्रिमूर्ति मे मोहन अगाशे को कूका जैसे दमदार विलेन का रोल देकर ये साबित कर दिया कि फ़िल्म के खलनायक चरित्र के साथ भी प्रयोग किये जा सकते है और वो दर्शकों के ज़ेहन मे सिहरन भी पैदा कर सकते हैं । विलेन के किरदार मे अमरीश पुरी ने मि. इंडिया मे मोगैम्बो को युगों युगों तक जीवंत कर दिया। बॉलीवुड मे विलेन का क्रेज़ शुरूआती दौर से रहा है लेकिन समय के साथ प्रयोगवादी नज़रिये ने खलनायक को नायक की बराबरी मे खड़ा कर दिया। फ़िल्म निर्देशक महेश भट्ट ने 1991 मे फ़िल्म सड़क से सदाशिव अमरापुरकर को महारानी के किरदार( जो कोठा चलाने वाला एक किन्नर है ) मे पेश कर विलेन की परिभाषा ही बदल कर रख दी ।
उसके बाद आशुतोष राणा का दौर आया और उन्होंने दुश्मन मे गोकुल पंडित तथा संघर्ष मे लज्जा शंकर पाण्डेय का नकारात्मक किरदार निभाकर न केवल सारे अवार्ड्स जीते बल्कि समाज की बुराई के प्रतीक उनके ये दो किरदार दर्शकों के दिलो दिमाग़ पर छा गये। उसके बाद अभिनेता संजय दत्त ने जब अग्निपथ के रीमेक मे काँचा का, शमशेरा मे दरोगा शुद्ध सिंह और के जी एफ पार्ट 2 मे अधीरा जैसे विलेन का किरदार निभाकर बॉलीवुड के बड़े विलेन की दुकान बंद कर दी. कुल मिलाकर आज बॉलीवुड को विलेन के किरदार भी
लार्जर देन लाइफ चाहिये जो न केवल दर्शकों को डरा सके बल्कि सालों साल दर्शकों के ज़ेहन मे मेहफूज़ भी रहे
आने वाली फिल्मों मे आदिपुरुष मे सैफ अली खान, लंकेश के किरदार मे नज़र आयेंगे। शाहरुख़ की जवान मे विजय सेतुपति भी खलनायक के किरदार मे दिखाई देंगे
© डॉ वासिफ़ काज़ी [ शाइर एवं फ़िल्म समीक्षक ]
©काज़ी की कलम
28/3/2, अहिल्या पल्टन , इक़बाल कॉलोनी
इंदौर, मध्य प्रदेश