लाना दहेज में।
तुम हमको खुश करने खातिर,
दहेज लाना बचपन का प्यार।
खुशियाँ हो सम्पूर्ण समाहित,
साथ में हो गुड़ियाँ दो चार।
लाना मन श्रृंगार के डिब्बे,
बन्द स्वर्ण करुणा अपार।
रजत सोम मुस्कान भरी हो,
हीर प्रभा हो जीवन सार।
हृदय तिजोरी लाना तू ऐसी,
सह अल्हड़पन का ताला हो।
छुपा न सके नादानियाँ कोई,
निश्छल बचपन रखवाला हो।
अरमानों की एक शैय्या लाना,
लाना सकूं की चादर भी यार।
खुशियों की अलमीरा में तुम,
पर्दें लाज के लाना चार।
सुनो लिफाफे गड्डी भर लाना,
तह तह हो पैतृक संस्कार।
सुख की पवन सावरी लाना,
खुश हो दुख, जब हो सवार।
श्री स्वरूपा रूप भी लाना,
पितृ से लाना धैर्य आचार।
प्रेम अन्न के दाने लाकर,
मुझपर करना तुम उपकार।
लाना एक ज्ञान की पोथी,
हर बेटी पर जो करे विचार।
दहेज हेतु क्यों मारी जाती,
भस्म हो ऐसा अत्याचार।।